“परोपकार करना दूसरे की सेवा करना और उससे जरा भी अहंकार न करना तथा निष्काम भाव से सेवा करना यही इस मानव जीवन का मूल मंत्र है | जो हाथ सेवा व मदद के लिए उठते है, वो प्रार्थना करने वाले हाथों से कहीं ज्यादा पवित्र है निष्काम सेवा सदन की कल्पना एवं निर्माण के पीछे यही मूल भाव रहा है यही चिंतन वह प्रेरणा पुंज है जो मुझे व मुझ जैसे सभी ट्रस्टियो व सह्योगिओं को सेवा के पथ पर निरंतरआगे बढने को प्रेरित करता है”